हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह हसन जवाहिरी ने ग़ाज़ा के हालात पर बात करते हुए कहा कि ग़ाज़ा की जंग एक न खत्म होने वाली जद्दोजहद है और इस्राईल की फतह का दावा महज़ एक भ्रम है उन्होंने साफ़ कहा कि दुश्मन से समझौता करना इमाम हुसैन अ. के रास्ते से हटना है और इस्लामी उसूलों से गद्दारी करना है।
नजफ़ अशरफ़ से मिली रिपोर्ट के मुताबिक़, आयतुल्लाह जवाहिरी ने अपने बयान में मौजूदा हालात और ग़ाज़ा की स्थिति पर बोलते हुए उलमा के किरदार को उम्मत की रहनुमाई में अहम बताया। उन्होंने कहा कि नजफ़ के मराजे इंसाफ़, हिकमत और अक़्लमंदी के उसूलों के पाबंद हैं और उन्हीं के ज़रिए उम्मत की रहनुमाई कर रहे हैं।
उन्होंने इस्राईल की तरफ़ से ग़ाज़ा में जीत के दावों को "महज़ एक वहम" बताते हुए कहा कि ग़ाज़ा न कभी हारा है, न कभी हारेगा। उनका कहना था कि ग़ाज़ा के अवाम की मज़बूती और सियूनियों के चेहरों पर मायूसी ही असली कामयाबी का सबूत है।
आयतुल्लाह जवाहिरी ने यह भी कहा कि जो लोग दुश्मन से सुलह-सफ़ाई की बात करते हैं, वह इमाम हुसैन अ. के रास्ते से भटक चुके हैं। हौज़ात-ए-इल्मिया हमेशा मज़लूमों के साथ खड़ी रही हैं, चाहे वह ग़ाज़ा हो, लेबनान हो या कोई और इलाक़ा।
उन्होंने कुछ अरब हुकूमतों पर तन्क़ीद करते हुए कहा कि उनकी गद्दारियों की वजह से मक़ावमत (प्रतिरोध) के महाज़ को नुक़सान ज़रूर पहुँचा, लेकिन यह मोर्चा आज भी पूरी ताक़त से क़ायम है और इसने दुश्मन को अपनी शर्तों के साथ बातचीत की मेज़ पर आने को मजबूर कर दिया है।
आयतुल्लाह जवाहिरी ने मरजईयत को दुनियावी फ़ायदे का ज़रिया समझने वालों को झूठा कहा और बताया कि यह एक शरई ज़िम्मेदारी है जिसे उलमा सिर्फ़ ख़ुदा के लिए अदा करते हैं। उन्होंने निज़ाम-ए-विलायत-ए-फ़क़ीह को पैग़म्बर मोहम्मद स. और इमामों अ. की विलायत का सिलसिला बताया।
अपने बयान में उन्होंने शहीद सैयद मोहम्मद बाकिर सद्र का ख़ास तौर पर ज़िक्र करते हुए कहा कि उनकी किताब "इक़्तिसादुना" ने मादी नज़रियात का इल्मी जवाब दिया और उन्होंने हक़ की सरबलंदी के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी।
आख़िर में आयतुल्लाह जवाहिरी ने उम्मत-ए-मुसलिमा से अपील की कि वह इस्ते'मार (साम्राज्यवाद) के फ़िक्री और सांस्कृतिक हमलों के ख़िलाफ़ होशियार रहें और दीन की तालीमात पर अमल करते हुए मज़लूमों की मदद को अपना धार्मिक फ़र्ज़ समझें।
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